15 April 2009

ऐ खुदा फ़िर से बच्चा बना दे मुझे

ऐ खुदा फ़िर से बच्चा बना दे मुझे
की ये दुनिया है मेरा खिलौना नही
आइने ने बदली है सूरत कई, हम भी जहाँ में बदलते जाए,
रही मेरी मंजिल तो बस एक वही, फासले हर कदम पर बदलते गए,
फ़िर से चलना तू अब सिखा दे मुझे,
की अनजान रहूँ पे अब है खोना नही , ऐ खुदा फ़िर से बच्चा बना दे मुझे
यूँ ही बरबस हँसी थी जो आँखे कभी, आज हसने की हमसे वजह मांगे है,
कह सकूँ भी तो कह दू में कैसे इन्हे, की मुक़द्दर में मेरे आंसू ही आए हैं,
फ़िर से एक नई दुनिया दिखा दे मुझे,
की इस बेदर्द दुनिया में है रोना नही
अपने सब्दों पर यकीन है मुझ को मगर,
इस अंधे जहान पर भरोसा नही,
ऐ खुदा फ़िर से बच्चा बना दे मुझे
की ये दुनिया है मेरा खिलौना नही,
की ये दुनिया है मेरा खिलौना नही..........

3 comments:

रवि रतलामी said...

अच्छी कविता है.

Shekhar said...

sundar

Dev_Ashish said...

good poem
but army wale bachoo ko nahi lete.